भारत में संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद आम बात है। खासकर तब, जब किसी पिता की वसीयत में बेटी का नाम न हो और संपत्ति का पूरा हिस्सा बेटे को दे दिया गया हो। सवाल उठता है कि क्या ऐसी स्थिति में बेटी का हक पूरी तरह खत्म हो जाता है? क्या एक वसीयत बेटी के अधिकार को पूरी तरह खत्म कर सकती है?
इस विषय में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया और अपने निर्णय में 9 अहम बिंदुओं (Points) के ज़रिए स्थिति को पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है।
वसीयत (Will) क्या है?
वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है, जिसमें व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद संपत्ति का बंटवारा किसे और कैसे करना है, यह निर्धारित करता है। वसीयत बनाने वाला व्यक्ति अपनी मर्जी से यह तय कर सकता है कि संपत्ति किसे दी जाए। लेकिन यदि इसमें किसी वैध उत्तराधिकारी, जैसे बेटी का नाम न हो, तो कानून क्या कहता है?
सुप्रीम कोर्ट के 9 अहम पॉइंट्स – बेटी का हक वसीयत के बिना
नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से कोर्ट ने यह साफ किया कि एक बेटी का हक केवल वसीयत पर निर्भर नहीं करता, और कई परिस्थितियों में उसे कानूनी अधिकार मिल सकते हैं।
1. बेटी भी कानूनी वारिस है
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और 2005 के संशोधन के बाद बेटी को बेटों के बराबर संपत्ति में अधिकार मिला है।
2. वसीयत में नाम न होने से हक खत्म नहीं होता
यदि वसीयत में बेटी का नाम नहीं है, तो भी वह वसीयत की वैधता को चुनौती देकर हक की मांग कर सकती है, खासकर अगर वसीयत संदेहास्पद हो।
3. वसीयत की जांच हो सकती है
कोर्ट देखेगा कि वसीयत दबाव, धोखा या अनुचित प्रभाव में तो नहीं बनाई गई। अगर ऐसा साबित हो जाता है, तो वसीयत को रद्द किया जा सकता है।
4. पैतृक संपत्ति पर बराबर का अधिकार
यदि संपत्ति पैतृक (ancestral) है, तो बेटी को उसका संपूर्ण और बराबर हिस्सा मिलेगा, चाहे उसका नाम वसीयत में हो या न हो।
5. संपत्ति में नारी अधिकारों की उपेक्षा अवैध है
कोर्ट ने कहा कि बेटी को केवल इसलिए वंचित करना कि वह विवाहिता है या पिता के साथ नहीं रहती, यह कानूनन अस्वीकार्य है।
6. बेटी न्यायालय में दावा कर सकती है
अगर बेटी को संपत्ति से वंचित किया गया है, तो वह दीवानी अदालत में दावा कर सकती है और न्यायिक आदेश के आधार पर अपना हिस्सा प्राप्त कर सकती है।
7. संपत्ति की प्रकृति महत्वपूर्ण है
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संपत्ति स्व-अर्जित है या पैतृक, इस आधार पर हक की स्थिति बदल सकती है। स्व-अर्जित संपत्ति में वसीयत अधिक प्रभावी होती है।
8. वसीयत में पक्षपात साबित होने पर बेटी को हक मिलेगा
अगर कोर्ट को लगे कि वसीयत पक्षपातपूर्ण या भेदभावपूर्ण है, तो वह बेटी को न्याय दिलाने के लिए वसीयत को आंशिक या पूर्ण रूप से रद्द कर सकता है।
9. बेटी का अधिकार सामाजिक न्याय से जुड़ा है
कोर्ट ने यह भी कहा कि संपत्ति में बेटियों को बराबरी का हक देना महिला सशक्तिकरण और सामाजिक संतुलन का हिस्सा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
क्या करें अगर वसीयत में नाम न हो?
अगर आप एक बेटी हैं और वसीयत में आपका नाम नहीं है, लेकिन आपको लगता है कि आपको संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए, तो आप:
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वकील से सलाह लें
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वसीयत की कॉपी प्राप्त करें
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संपत्ति की स्थिति जांचें (पैतृक या स्व-अर्जित)
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दीवानी कोर्ट में दावा दायर करें
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साक्ष्य और गवाहों की मदद से अपने हक को साबित करें
निष्कर्ष
यह कहना पूरी तरह गलत होगा कि अगर बेटी का नाम वसीयत में नहीं है, तो उसे संपत्ति में कोई हक नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के 9 निर्देशों से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि बेटी के अधिकार केवल कागज के एक टुकड़े (वसीयत) से खत्म नहीं किए जा सकते। हर बेटी को चाहिए कि वह अपने हक की जानकारी रखे और जरूरत पड़ने पर कानून का सहारा ले।