मामा ने मां की जायदाद हड़पी – जानें कौन सा कानून दिलाएगा पूरा हिस्सा

परिवार में संपत्ति विवाद कोई नई बात नहीं है। कई बार रिश्तेदार या परिवार के सदस्य धोखे से संपत्ति पर कब्जा कर लेते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में अक्सर सुनने को मिलता है कि मामा ने मां की जायदाद हड़प ली, कागज अपने नाम करवा लिए या कब्जा जमा लिया। ऐसे में बेटों और बेटियों को समझ नहीं आता कि अब क्या करें, किससे शिकायत करें और कैसे अपना कानूनी हक वापस लें।

अगर आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। भारतीय कानून में ऐसे मामलों के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं, जिनके जरिए आप अपनी मां का हिस्सा वापस दिलवा सकते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि मामा ने मां की जायदाद हड़पी होने पर आपको कौन-कौन से कानूनी अधिकार और विकल्प मिलते हैं।

सबसे पहले समझें संपत्ति में हक का नियम

भारत में संपत्ति से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण कानून हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 है। इसके तहत अगर किसी महिला के माता-पिता की संपत्ति है, तो उस पर उनका भी उतना ही हक है जितना उनके भाईयों यानी मामा का।

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मतलब अगर नाना-नानी की संपत्ति में बेटों के साथ-साथ बेटियों का भी बराबर हिस्सा है। कई बार मामा इस अधिकार को छिपा लेते हैं और मां को हिस्सा नहीं देते। लेकिन कानून साफ है — बेटी को माता-पिता की संपत्ति में बराबरी का हक मिलेगा।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने भी कई ऐतिहासिक फैसलों में बेटियों के हक को मजबूत किया है। 2020 के एक महत्वपूर्ण फैसले में कोर्ट ने साफ कहा कि बेटियां भी माता-पिता की संपत्ति में समान उत्तराधिकारी हैं, चाहे उनका जन्म किसी भी वर्ष हुआ हो और चाहे पिता की मृत्यु किसी भी वर्ष हुई हो।

इसलिए अगर मामा ने आपकी मां को उनका हिस्सा नहीं दिया है तो आप इस आधार पर मुकदमा कर सकते हैं।

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मामा ने मां की जायदाद हड़पी – सबसे पहले क्या करें?

कागजात जुटाएं: सबसे पहले नाना-नानी की संपत्ति से जुड़े सारे दस्तावेज जुटाएं — रजिस्ट्री, खतौनी, खसरा नंबर, वरासत नामांतरण की प्रति इत्यादि।

वारिस प्रमाण पत्र बनवाएं: साबित करें कि मां उस संपत्ति की वैध वारिस हैं। इसके लिए तहसील या नगर निगम से वारिस प्रमाण पत्र लें।

कानूनी नोटिस भेजें: मामा को पहले कानूनी नोटिस भेजें। इसमें मां के हक का हवाला देकर उनका हिस्सा देने की मांग करें।

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राजस्व विभाग में शिकायत करें: गांव या तहसील स्तर पर लेखपाल और पटवारी से मिलकर कब्जा विवाद दर्ज कराएं। वे मौके पर जांच कर रिपोर्ट देंगे।

सिविल कोर्ट में दावा दायर करें: अगर मामा फिर भी हिस्सा नहीं देते हैं तो सिविल कोर्ट में विभाजन व मुकदमा (Partition Suit) दायर करें। कोर्ट दस्तावेज देखकर मां के हक का फैसला सुनाएगी।

कौन सा कानून करेगा मदद?

 हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956

यह अधिनियम बेटियों को पिता और माता की संपत्ति में बराबरी का हक देता है। किसी भी बेटी को उसका हिस्सा रोका नहीं जा सकता।

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 उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम

गांव की जमीन से जुड़े मामलों में यह एक्ट भी लागू होता है। इसके जरिए राजस्व विभाग से कब्जा हटवाया जा सकता है।

 सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC)

मकान या जमीन में बंटवारे के लिए सिविल कोर्ट में बंटवारा वाद (Partition Suit) दाखिल किया जाता है।

भारतीय दंड संहिता (IPC)

अगर मामा ने जबरन कब्जा किया हो या कागजों में धोखाधड़ी की हो तो धोखाधड़ी की धाराओं में आपराधिक मुकदमा भी दर्ज कराया जा सकता है।

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पुलिस में शिकायत कब करें?

अगर मामा या उनके परिवार के लोग कब्जा छुड़ाने या हिस्सा मांगने पर धमकी दें, तो तुरंत पुलिस स्टेशन में शिकायत करें। जरूरत पड़ी तो आप धारा 107/116 CrPC के तहत शांति भंग की आशंका में भी कार्रवाई कर सकते हैं।

क्या मामा को देना होगा जुर्माना?

अगर कोर्ट साबित कर देता है कि मामा ने जानबूझकर संपत्ति में हेरफेर की या दस्तावेज में फर्जीवाड़ा किया, तो उन पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। कई बार कोर्ट कब्जा हटवाने के साथ-साथ हर्जाना भी देती है।

कितना समय लगेगा?

संपत्ति विवाद के मामले में अदालत में फैसला आने में थोड़ा समय लग सकता है। लेकिन अगर दस्तावेज पूरे हैं तो कोर्ट जल्दी से जल्दी स्टे ऑर्डर या इंटरिम ऑर्डर देकर कब्जा दिला सकता है।

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क्या बेटा-बेटी दोनों दावा कर सकते हैं?

जी हां! अगर मां अब जीवित नहीं हैं तो उनके बेटे और बेटी — यानी आप — वारिस के तौर पर दावा कर सकते हैं। आपके पास वारिस प्रमाण पत्र और नाना-नानी के कागज होने चाहिए।

निष्कर्ष

अगर मामा ने मां की जायदाद हड़प ली है तो घबराएं नहीं। भारतीय कानून और सुप्रीम कोर्ट दोनों बेटियों के हक में खड़े हैं। सही दस्तावेज, सही सलाह और सही कानूनी प्रक्रिया से आप अपनी मां का हक जरूर दिलवा सकते हैं।

कभी भी धोखेबाजी या कब्जा बर्दाश्त न करें — जागरूक बनें, अधिकार जानें और जरूरत पड़े तो तुरंत कानूनी कदम उठाएं।

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