बेटे की संपत्ति पर मां का हक या बहू का कब्जा? पढ़ें पूरा कानूनी सच

आज के समय में संपत्ति विवाद सबसे आम घरेलू विवादों में से एक बन चुका है। खासकर बेटे की संपत्ति को लेकर मां और बहू के बीच अकसर विवाद हो जाता है कि आखिर हक किसका होगा। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि बेटे की संपत्ति पर मां का अधिकार क्या है और बहू का दावा कहां तक सही है। आइए जानते हैं इससे जुड़े कानून, कोर्ट के फैसले और जरूरी नियम

किसका हक है बेटे की संपत्ति पर?

भारतीय परिवारों में अकसर देखा जाता है कि बेटा अपने माता-पिता के साथ रहता है और शादी के बाद बहू भी उसी घर में रहती है। अगर घर बेटे के नाम पर है तो क्या मां का उस पर कोई हक है? जवाब है – हां!

अगर बेटा जिंदा है तो प्रॉपर्टी उसके नाम ही मानी जाएगी। लेकिन अगर बेटा नहीं है और उसने वसीयत नहीं बनाई है तो उसके बाद उसकी संपत्ति में पहला हक पत्नी और बच्चों का होता है। हालांकि मां को भी बेटे की संपत्ति में हिस्सा मिलता है।

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कानून क्या कहता है?

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के मुताबिक अगर बेटा बिना वसीयत के मरता है तो उसकी संपत्ति का बंटवारा इस तरह होगा:
 पहली श्रेणी के वारिस में पत्नी, बेटे-बेटियां और मां शामिल होते हैं।
 मां को भी बेटे की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा।
 अगर बहू और बच्चों का भी हक है तो मां को भी उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना बहू को।

बहू का क्या अधिकार होता है?

अगर घर बेटे के नाम पर है और बेटा जिंदा है तो बहू का घर पर सीधा स्वामित्व नहीं होता। लेकिन Domestic Violence Act, 2005 के तहत बहू को Shared Household में रहने का अधिकार होता है। मतलब वह पति के घर में ससुराल में रह सकती है। इसे कोई ससुर या सास जबरन नहीं निकाल सकता।

लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बहू उस घर को बेच सकती है या उस पर पूरा कब्जा जमा सकती है। मकान मालिकाना हक सिर्फ उसी का होता है जिसके नाम पर संपत्ति रजिस्टर्ड है।

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कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट कई बार यह साफ कर चुके हैं कि अगर बेटा अपनी माता-पिता की संपत्ति में बहू को रखने से मना करता है तो भी बहू को वैकल्पिक व्यवस्था देनी होगी। मतलब पति को दूसरी जगह रहने की व्यवस्था करनी होगी। लेकिन बहू सास-ससुर की संपत्ति को अपनी मर्जी से नहीं बेच सकती और न ही कब्जा जमा सकती है।

अगर बेटा मां की प्रॉपर्टी हथिया ले?

कई बार देखने में आता है कि बेटा ही अपनी मां की संपत्ति पर अवैध कब्जा कर लेता है या मां को बेदखल करने की कोशिश करता है। ऐसे में मां के पास Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 के तहत पूरा अधिकार है कि वो बेटे को घर से निकाल सकती हैं या कोर्ट में केस कर सकती हैं।

बहू कब घर खाली कर सकती है?

अगर मकान सास-ससुर के नाम है और बेटा गुजर गया है तो बहू को Shared Household के अधिकार के तहत रहने दिया जाएगा। लेकिन अगर सास-ससुर साबित कर दें कि उन्हें बहू से खतरा या परेशानी है तो कोर्ट बहू को वैकल्पिक घर की व्यवस्था करने को कह सकता है और उसे संपत्ति खाली करानी पड़ सकती है।

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बिना वसीयत के संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा?

अगर बेटा बिना वसीयत के मरता है तो उसकी संपत्ति के वारिस होंगे:
पत्नी
 बच्चे
 मां

तीनों को बराबर हिस्सा मिलेगा। अगर मां नहीं है तो हिस्सा पत्नी और बच्चों में बराबर बंटेगा। अगर पत्नी भी नहीं है तो मां और बच्चों में बंटेगा।

क्या बेटे की संपत्ति पर मां दावा कर सकती है?

अगर बेटा जिंदा है तो मां बेटे की संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती। लेकिन अगर बेटा मां के खर्चे नहीं उठा रहा है तो मां कोर्ट में Maintenance का केस कर सकती है।

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बहू घर पर कब हक जता सकती है?

बहू को सिर्फ रहने का हक है। पति के जिंदा रहते बहू का घर बेचने या गिरवी रखने का अधिकार नहीं है। अगर पति गुजर गया है तो ससुराल के घर में बहू को रहने का अधिकार मिलेगा लेकिन मालिकाना हक नहीं।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में साफ कहा गया है कि बहू Shared Household के अधिकार के तहत पति के घर में रह सकती है लेकिन वह घर उसकी निजी संपत्ति नहीं है। अगर सास-ससुर चाहें तो वह बहू को घर खाली करने के लिए कोर्ट में अपील कर सकते हैं। कोर्ट बहू को वैकल्पिक मकान दिलाने का आदेश दे सकता है।

निष्कर्ष

बेटे की संपत्ति पर मां और बहू दोनों का हक अलग-अलग परिस्थिति में तय होता है।
 बेटे के जिंदा रहते मकान उसी का होगा।
 बेटे के निधन के बाद मां, पत्नी और बच्चों में बराबर हिस्सा बंटेगा।
 बहू Shared Household के अधिकार से सिर्फ रह सकती है, मालिकाना हक नहीं होता।
 सास-ससुर चाहें तो बहू को कोर्ट के आदेश से घर खाली भी करवा सकते हैं।

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