बेटे की कमाई पर मां का अधिकार या बहू का हक, जानें कानून क्या कहता है

अक्सर भारतीय परिवारों में संपत्ति और पैसों को लेकर विवाद होते रहते हैं। खासकर शादी के बाद बेटे की कमाई और संपत्ति पर मां और बहू के अधिकार को लेकर कई तरह के सवाल उठते हैं। क्या बेटे की कमाई पर मां का अधिकार है? या शादी के बाद बहू का उस पर हक बनता है? ऐसे सवालों का जवाब जानना जरूरी है ताकि भविष्य में कानूनी पचड़ों से बचा जा सके।

भारतीय कानून बेटे की संपत्ति को लेकर क्या कहता है?

भारतीय कानून के अनुसार, बेटा जब तक अविवाहित है, उसकी कमाई पर उसके माता-पिता का ही अधिकार माना जाता है। लेकिन जैसे ही बेटा शादी करता है, उसकी कमाई और संपत्ति का अधिकारिक मालिक वही रहता है। पति-पत्नी के बीच में पति की कमाई परिवार चलाने के लिए मानी जाती है, लेकिन कानूनी रूप से बहू को सीधे तौर पर बेटे की व्यक्तिगत संपत्ति में हक नहीं होता, जब तक वह खुद की संपत्ति के लिए दावे न करे।

बेटे की कमाई पर मां का अधिकार कितना है?

भारतीय पारिवारिक कानून में बेटे के ऊपर माता-पिता की देखभाल का जिम्मा साफ तौर पर तय किया गया है। हिंदू प्रतिषेध अधिनियम 1956 के तहत बेटे का फर्ज है कि वह अपने माता-पिता की देखभाल करे और उन्हें भरण-पोषण दे। अगर बेटा अपनी मां को खर्चा नहीं देता तो मां कोर्ट में जाकर भरण-पोषण के लिए केस कर सकती है। इसके लिए मां को साबित करना होगा कि उसकी आमदनी नहीं है और वह अपने बेटे पर आश्रित है।

क्या बहू के पास भी कोई अधिकार होता है?

बहू के अधिकार पति की कमाई पर सीधे तौर पर नहीं होते, लेकिन पति की मृत्यु या तलाक की स्थिति में पत्नी को अलग से गुजारा भत्ता या संपत्ति का हिस्सा मिल सकता है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत पत्नी को पति की संपत्ति में रहने का अधिकार मिलता है। हालांकि, यह अधिकार बेटे की मां के हक को खत्म नहीं करता।

संयुक्त परिवार में किसका कितना हक होता है?

भारत में कई परिवार संयुक्त रहते हैं। ऐसे में घर की संपत्ति अक्सर पुरखों की होती है। संयुक्त परिवार की संपत्ति में मां का हक भी बनता है क्योंकि वह उस परिवार का हिस्सा है। अगर बेटा अकेले कमाता है और संयुक्त परिवार से अलग रहता है, तो मां को कानूनन भरण-पोषण का हक रहेगा। बहू को भी पति के रहते हुए घर में रहने का अधिकार प्राप्त है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले क्या कहते हैं?

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कई मामलों में यह साफ किया है कि बेटे को अपने माता-पिता की देखभाल करनी होगी। वहीं पत्नी को भी पति के घर में रहने का अधिकार है। अगर पति अपनी पत्नी को घर से निकाल देता है तो पत्नी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत संरक्षण मांग सकती है। लेकिन मां और बहू के बीच अगर विवाद होता है तो कोर्ट परिस्थितियों के अनुसार फैसला सुनाता है।

संपत्ति बंटवारे में मां और बहू की स्थिति

अगर बेटा अपनी खुद की कमाई से संपत्ति खरीदता है तो वह उसकी सेल्फ-एक्वायर्ड प्रॉपर्टी मानी जाएगी। इस पर बेटे के बाद पत्नी और बच्चों का हक बनता है। मां का इस पर अधिकार नहीं माना जाता, लेकिन अगर संपत्ति पुरखों की है तो मां को भी हिस्सा मिलेगा। संपत्ति बंटवारे में मां का हिस्सा पहले आता है फिर बहू या पत्नी का।

मां को कैसे मिल सकता है हक?

अगर बेटा मां को भरण-पोषण नहीं देता तो मां ‘Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007’ के तहत जिला मजिस्ट्रेट के पास आवेदन कर सकती है। कोर्ट बेटे को आदेश दे सकता है कि वह मां को हर महीने तय राशि दे। यह राशि मां की जरूरतों के अनुसार तय होती है।

क्या बहू मां को घर से निकाल सकती है?

बहुत से मामलों में देखा गया है कि बहू और सास के बीच विवाद के चलते बहू सास को घर से निकालने की कोशिश करती है। लेकिन कानूनन बहू ऐसा नहीं कर सकती। अगर घर बेटे की संपत्ति है तो मां को वहां रहने का पूरा हक है। कोर्ट के अनुसार सास को उसके बेटे की संपत्ति में रहने से कोई नहीं रोक सकता।

निष्कर्ष

इस तरह साफ है कि बेटे की कमाई और संपत्ति पर मां और बहू दोनों के अधिकार हैं, लेकिन उनकी स्थिति अलग-अलग होती है। मां को बेटे से भरण-पोषण पाने का हक है और बहू को पति के रहते घर में रहने का अधिकार है। विवाद की स्थिति में कोर्ट पूरे मामले को देख कर फैसला सुनाता है।

इसलिए बेहतर है कि परिवार के लोग आपसी समझ से मामलों को सुलझाएं और कानूनी विवाद से दूर रहें। अगर मामला ज्यादा बढ़ जाए तो विशेषज्ञ वकील की सलाह जरूर लें।

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