भारत में जमीन विवाद एक बहुत बड़ा मुद्दा है। लाखों लोग आज भी अपनी पुश्तैनी या खरीदी हुई जमीन पर हक तो रखते हैं, लेकिन उनके पास उसके पक्के कागज या रजिस्ट्री के दस्तावेज नहीं होते। इसी वजह से कई बार जमीन पर विवाद होते हैं और कई परिवार सालों-साल अदालतों के चक्कर काटते रहते हैं। ऐसे ही मामलों पर अब अदालत ने एक बड़ा फैसला सुनाया है, जिससे उन लोगों को बड़ी राहत मिलेगी जिनके पास जमीन तो है लेकिन उसके कागज नहीं हैं। आइए जानते हैं कोर्ट के इस नए नियम से किसे फायदा मिलेगा, कैसे मिलेगा और क्या शर्तें पूरी करनी होंगी।
कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला क्या है?
हाल ही में एक अहम जमीन विवाद केस में अदालत ने साफ कहा कि अगर किसी व्यक्ति के पास जमीन के मालिकाना हक के पक्के कागज नहीं हैं, लेकिन वह बरसों से उस जमीन पर काबिज है, खेती-बाड़ी कर रहा है या मकान बनाकर रह रहा है, तो ऐसे व्यक्ति को भी जमीन का असली मालिक माना जाएगा। इस फैसले ने ऐसे लाखों लोगों को राहत दी है जो दस्तावेजों के अभाव में जमीन पर मालिकाना हक साबित नहीं कर पाते थे।
क्यों जरूरी था यह फैसला?
देश के गांवों और कस्बों में आज भी बड़ी संख्या में लोग ऐसी जमीन पर रह रहे हैं जिसके कागज उनके नाम नहीं हैं। कई बार पुरानी विरासत में मिली जमीनों के रिकॉर्ड तैयार नहीं हो पाते या पुराने बंटवारे में कागज खो जाते हैं। ऐसे में लोग बरसों से जमीन जोत-बोकर इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन कोर्ट में जब मालिकाना हक साबित करना होता है तो दस्तावेज न होने से हार जाते हैं। नया कोर्ट रूल ऐसे लोगों को कानूनी सुरक्षा देता है।
किन शर्तों पर मिलेगा फायदा?
हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि बिना कागज के जमीन का मालिकाना हक तभी माना जाएगा जब कुछ जरूरी शर्तें पूरी हों। जैसे:
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व्यक्ति कम से कम 12 साल या उससे ज्यादा वक्त से लगातार उस जमीन पर काबिज हो।
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जमीन पर कोई दूसरा व्यक्ति दावा न कर रहा हो।
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कब्जा शांतिपूर्ण और खुला हो यानी छुपा हुआ कब्जा न हो।
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जमीन पर खेती, मकान या बाउंड्री वॉल आदि से कब्जे के सबूत हों।
क्या है ‘एडवर्स पजेशन’?
कानून में इस नियम को एडवर्स पजेशन कहते हैं। मतलब अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से किसी जमीन पर मालिक की तरह काबिज है, तो समय सीमा पूरी होने के बाद उसके हक में मालिकाना हक माना जा सकता है। नया कोर्ट आदेश इसी सिद्धांत को और मजबूत करता है।
जमीन के पुराने मालिक को कब हक नहीं मिलेगा?
अगर असली मालिक ने लंबे समय तक कोर्ट में दावा नहीं किया या कब्जा हटाने की कोशिश नहीं की, तो एडवर्स पजेशन लागू हो जाएगा। यानी पुराने मालिक का हक खत्म और कब्जाधारी का हक कायम। इसी वजह से कोर्ट ने कहा है कि असली मालिकों को भी सजग रहना चाहिए और समय पर अपनी जमीन पर नजर रखनी चाहिए।
किसे होगा सबसे बड़ा फायदा?
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गांवों में जिनके पास पुश्तैनी जमीन है लेकिन रिकॉर्ड नहीं है।
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शहरों में पुराने मोहल्लों में बसे लोग जिनके मकान के पक्के कागज नहीं हैं।
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किसान जिनकी खेती की जमीन के पुराने रिकॉर्ड खो चुके हैं।
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गरीब परिवार जो बरसों से सरकारी या विवादित जमीन पर रह रहे हैं।
क्या सरकारी जमीन पर भी लागू होगा?
सरकारी जमीन यानी सरकारी चारागाह, तालाब या सड़क पर कब्जा करके कोई भी एडवर्स पजेशन का दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने साफ किया है कि सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों को मालिकाना हक नहीं मिलेगा। ये नियम सिर्फ निजी जमीन पर ही लागू होगा।
क्या करना होगा दस्तावेज न होने पर?
अगर आपके पास जमीन के कागज नहीं हैं लेकिन आप बरसों से उस पर काबिज हैं, तो आप कोर्ट में एडवर्स पजेशन का केस दाखिल कर सकते हैं। इसके लिए आपको यह साबित करना होगा कि आपने इतने सालों तक कब्जा शांतिपूर्वक और खुले तौर पर रखा है। पंचायत या ग्राम सभा से साक्ष्य, गवाह और स्थानीय रिकॉर्ड इसमें मददगार होंगे।
पुराने विवादों पर क्या असर होगा?
इस फैसले के बाद हजारों पुराने केसों में भी नई दिशा मिलेगी। जिन मामलों में कागजों के झमेले में फंसे लोग हार मान चुके थे, वे अब अपने हक के लिए फिर से दावा कर सकते हैं। इससे कोर्ट में पुराने केसों के निपटारे में भी तेजी आएगी।
दस्तावेजों को अपडेट कराना भी जरूरी
हालांकि कोर्ट ने कब्जाधारी को राहत दी है, लेकिन जमीन के कागज और रिकॉर्ड अपडेट रखना भी जरूरी है। सरकार ने डिजिटाइजेशन के जरिए अब जमीन रिकॉर्ड ऑनलाइन उपलब्ध कराए हैं। इसलिए अगर आपके पास पुराने दस्तावेज नहीं हैं तो तहसील या रेवेन्यू ऑफिस में जाकर रिकॉर्ड अपडेट कराएं।
निष्कर्ष
नया कोर्ट रूल उन लोगों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है जिनके पास बरसों से जमीन तो थी लेकिन कागज नहीं थे। अब ऐसे लोग भी कानूनन असली मालिक कहलाएंगे, बशर्ते वे तय शर्तों को पूरा करते हों। जमीन विवादों से जुड़े लोग इस फैसले को अच्छी तरह समझें और अपने अधिकार के लिए सही कानूनी कदम उठाएं।