किसी सरकारी अफसर पर केस से पहले किसकी इजाजत जरूरी? पढ़ें सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सरकारी कर्मचारियों और अफसरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कब और कैसे हो सकती है, यह हमेशा से आम लोगों के लिए एक बड़ा सवाल रहा है। कई बार ऐसा देखा गया है कि किसी सरकारी कर्मचारी पर तुरंत FIR दर्ज कर दी जाती है या कोर्ट में केस दायर कर दिया जाता है। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर बड़ा और अहम फैसला सुनाया है, जिससे लाखों सरकारी कर्मचारियों को राहत मिली है और आम जनता को भी अब सही प्रक्रिया की जानकारी होनी जरूरी है।

अगर आप भी जानना चाहते हैं कि किसी सरकारी अफसर पर केस या मुकदमा दर्ज करने से पहले किसकी अनुमति जरूरी है, तो यह लेख आपके लिए बेहद उपयोगी है। आइए विस्तार से समझते हैं सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले को और जानते हैं कि यह नियम किन लोगों पर लागू होता है।

सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा क्यों खास मामला है?

भारत में सरकारी कर्मचारी या अफसर अपने कार्यकाल में कई ऐसे निर्णय लेते हैं जो सीधे जनता से जुड़े होते हैं। कई बार अफसरों को नीतिगत या प्रशासकीय फैसले लेने होते हैं जिनसे कुछ लोगों को असुविधा या नुकसान महसूस हो सकता है। ऐसे में अगर हर फैसला करने पर उन पर केस या FIR दर्ज होने लगे तो प्रशासनिक कामकाज ठप पड़ सकता है।

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इसीलिए कानून सरकारी कर्मचारियों को कुछ हद तक सुरक्षा देता है ताकि वे अपने कार्यों को निष्पक्ष और बिना दबाव के कर सकें।

कौन सा कानून देता है सरकारी कर्मचारियों को सुरक्षा?

भारतीय दंड संहिता (IPC) और आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में सरकारी कर्मचारियों के लिए विशेष प्रावधान हैं।

CrPC की धारा 197 कहती है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कोई काम करता है और उस पर आपराधिक मामला दर्ज करना हो तो उसके खिलाफ केस चलाने से पहले सरकार की अनुमति लेना जरूरी है। बिना पूर्व अनुमति के कोर्ट में मुकदमा स्वीकार नहीं होगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक केस में साफ किया कि अगर कोई सरकारी अफसर अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए कोई निर्णय लेता है और उसी से जुड़ा कोई केस दर्ज होता है तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले संबंधित सरकार की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है।

अगर यह स्वीकृति नहीं ली जाती है तो मुकदमा अवैध माना जाएगा और कोर्ट उसे खारिज कर सकती है।

किस मामले में आया ये फैसला?

यह फैसला एक ऐसे केस से जुड़ा है जिसमें एक सरकारी अफसर ने अपने विभागीय काम के दौरान एक आदेश पारित किया था। बाद में उस आदेश से असंतुष्ट होकर किसी व्यक्ति ने उनके खिलाफ केस कर दिया। मामला हाई कोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में बिना पूर्व अनुमति मुकदमा नहीं चल सकता।

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कौन देता है अनुमति?

यह अनुमति किसे देनी है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कर्मचारी किस स्तर का है और किस सरकार के अधीन काम कर रहा है।

 अगर अफसर केंद्र सरकार के अधीन है तो केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी।
 अगर कर्मचारी राज्य सरकार के अधीन है तो राज्य सरकार से अनुमति जरूरी होगी।
 कुछ मामलों में जिला कलेक्टर या संबंधित विभाग प्रमुख भी सक्षम प्राधिकारी माने जाते हैं।

कब नहीं चाहिए अनुमति?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि यह सुरक्षा कवच तभी तक है जब तक अफसर ने कोई काम अपने आधिकारिक कर्तव्यों के तहत किया हो। अगर कोई अफसर निजी स्वार्थ में या कानून से बाहर जाकर कोई गैर-कानूनी काम करता है तो उस पर केस चलाने के लिए अनुमति जरूरी नहीं होगी।

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उदाहरण:

ऐसे मामलों में कोर्ट बिना अनुमति भी केस स्वीकार कर सकता है।

FIR दर्ज करने पर क्या नियम है?

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि अगर मामला गंभीर है और आरोप सरकारी काम से संबंधित नहीं हैं तो FIR दर्ज करने के लिए अलग से अनुमति की जरूरत नहीं। लेकिन अगर आरोप सरकारी कार्य से सीधे जुड़े हैं तो पहले सरकार से अनुमति लेना जरूरी होगा।

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सरकारी कर्मचारियों को राहत या नई चुनौती?

इस फैसले से जहां एक ओर ईमानदार सरकारी कर्मचारियों को राहत मिलेगी वहीं ऐसे अफसरों के लिए खतरा भी रहेगा जो अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कोई अफसर अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है तो अनुमति की ढाल उसे नहीं बचा सकती।

आम जनता के लिए क्या सीख?

अगर आप किसी सरकारी अफसर के खिलाफ केस या शिकायत करना चाहते हैं तो पहले यह देखें कि मामला उनके आधिकारिक कामकाज से जुड़ा है या नहीं। अगर हां, तो पहले संबंधित सरकार से मंजूरी जरूरी होगी। वरना आपका केस या FIR तकनीकी वजहों से खारिज हो सकता है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बेहद अहम है क्योंकि इससे साफ हुआ कि सरकारी अफसरों पर केस करने की प्रक्रिया कैसे चलेगी।

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किसी सरकारी अफसर पर केस से पहले किसकी इजाजत जरूरी है? इसका जवाब साफ है – अगर मामला सरकारी कर्तव्यों से जुड़ा है तो सरकार से पूर्व स्वीकृति जरूरी है। अगर नहीं, तो सीधे मुकदमा चल सकता है।

यह फैसला सरकारी कर्मचारियों को मनमानी करने की छूट नहीं देता, बल्कि ईमानदार अफसरों को बेवजह कानूनी परेशानियों से बचाता है। साथ ही जनता को यह समझने में मदद करता है कि सही कानूनी तरीका क्या है।

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