कानून ने बदल दिया खेल – अब बेटी होते हुए भी नहीं मिलेगा पिता की जायदाद में हिस्सा

भारत में बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हक देने के लिए कई बार कानून बदले गए हैं। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक अहम फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हर बेटी को स्वतः ही पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा। यह फैसला कुछ खास परिस्थितियों पर आधारित है, जो आगे चलकर लाखों परिवारों पर असर डाल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला – किस बात पर हुआ फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि:

“यदि पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार (Hindu Succession Act, 1956) में संशोधन से पहले यानी 9 सितंबर 2005 से पहले हो गई थी, तो उस स्थिति में बेटी को पैतृक संपत्ति में हक नहीं मिलेगा।”

यह फैसला एक विशेष केस पर आधारित था, जिसमें पिता की मृत्यु 2001 में हो चुकी थी और बेटी ने 2007 में संपत्ति में हिस्सा मांगा था। कोर्ट ने माना कि कानून का प्रभाव पिछली तारीख (retrospective) से नहीं हो सकता जब तक स्पष्ट रूप से ऐसा न कहा गया हो।

इसका क्या मतलब है?

इसका सीधा सा अर्थ यह है कि:

  • यदि पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो चुकी है, तो बेटी को पैतृक संपत्ति में हक नहीं मिलेगा, भले ही वह जन्म से ही बेटी रही हो।

  • यदि पिता की मृत्यु 9 सितंबर 2005 के बाद हुई है, तो बेटी को पुत्र के समान अधिकार मिलेगा।

क्या है हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005?

2005 में एक बड़ा बदलाव हुआ था जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को संशोधित किया गया। इसके तहत:

  • बेटियों को पुत्र के बराबर पैतृक संपत्ति में अधिकार मिला।

  • उन्हें समान रूप से वारिस माना गया।

लेकिन इस संशोधन का लाभ उन्हीं बेटियों को मिलेगा जिनके पिता की मृत्यु 2005 के बाद हुई।

कौन सी बेटियाँ होंगी प्रभावित?

  1. जिनके पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई

  2. जिन परिवारों में संपत्ति का बंटवारा हो चुका है या कोई वसीयत बनी है

  3. जहाँ संपत्ति साझा न होकर स्वयं की (self-acquired) हो

  4. जहाँ बेटी के हक को अदालत में चुनौती दी जा चुकी है

विशेष बातें जो जानना जरूरी है

बिंदु प्रभाव
पिता की मृत्यु 2005 से पहले हक खत्म
पिता की मृत्यु 2005 के बाद हक बरकरार
अगर संपत्ति पर विवाद हो अदालत तय करेगी
पिता की खुद की संपत्ति हो वसीयत के आधार पर मिल सकता है

 क्या करें अगर आप बेटी हैं और संपत्ति में हिस्सा चाहती हैं?

  1. पहले यह जांचें कि पिता की मृत्यु कब हुई।

  2. संपत्ति की प्रकृति समझें – क्या वह पैतृक है या स्वयं अर्जित?

  3. यदि पैतृक है और पिता की मृत्यु 2005 के बाद हुई, तो कानूनी अधिकार है।

  4. अगर संपत्ति साझा है, तो हिस्सेदारी के लिए अदालत में दावा कर सकते हैं।

 विशेषज्ञ की राय

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला कानून की स्पष्टता के लिहाज से जरूरी था। इससे यह तय हो गया कि सभी मामलों में बेटियों को संपत्ति का हक नहीं दिया जा सकता। जो भी दावे होंगे, वह तारीख और संपत्ति की प्रकृति के आधार पर तय होंगे।

निष्कर्ष

यह समझना जरूरी है कि हर बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता।
सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले ने यह साफ किया है कि कानून के संशोधन से पहले मृत्यु होने पर बेटियाँ वारिस नहीं मानी जाएंगी। इस फैसले से लाखों परिवार प्रभावित हो सकते हैं, खासकर वे जो कानूनी प्रक्रिया में हैं।

अगर आप या आपके परिवार में कोई इस स्थिति में है, तो किसी अनुभवी वकील की सलाह ज़रूर लें और अपनी स्थिति के अनुसार सही कार्रवाई करें।

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