भारत में पैतृक संपत्ति को लेकर बेटियों के हक पर आए दिन नए विवाद सामने आते रहते हैं। हाल ही में हाईकोर्ट का एक बड़ा फैसला चर्चा में है जिसमें बेटियों को करीब ₹10 करोड़ की पैतृक संपत्ति से बाहर कर दिया गया। इस फैसले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बेटियों को वाकई उनका हक मिल रहा है? क्या हिन्दू उत्तराधिकार कानून में अब भी खामियां हैं?
क्या है मामला?
यह मामला एक संपन्न परिवार की पैतृक संपत्ति से जुड़ा है, जिसकी अनुमानित कीमत करीब 10 करोड़ रुपये है। बेटियों ने दावा किया था कि उन्हें भी पिता की पैतृक जमीन में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए, लेकिन कोर्ट में उनकी दलीलें खारिज हो गईं। कोर्ट ने कहा कि जिस तरह के दस्तावेज और हालात हैं, उनमें बेटियों का हिस्सा नहीं बनता।
क्या कहता है हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम?
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत बेटा और बेटी दोनों पैतृक संपत्ति में बराबर के हकदार होते हैं। साल 2005 में कानून में बदलाव कर बेटियों को बेटे के समान अधिकार दिए गए। अब बेटी चाहे विवाहित हो या अविवाहित, उसे पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए।
पर कई बार कोर्ट में पुराने दस्तावेज, पहले किए गए पारिवारिक समझौते या वसीयत (Will) बेटियों के दावे को कमजोर कर देते हैं। यही वजह है कि ऐसे मामले में हाईकोर्ट ने फैसला बेटियों के खिलाफ सुनाया।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने दस्तावेजों और पारिवारिक समझौते को देखते हुए कहा कि बेटियों ने पहले ही संपत्ति से अपना दावा छोड़ दिया था या उनके पास ऐसा कोई मजबूत सबूत नहीं है जिससे साबित हो कि उन्हें हिस्सा मिलना चाहिए था। ऐसे में बेटियों का दावा खारिज कर दिया गया।
क्या बेटियां अब अपील कर सकती हैं?
हां! सुप्रीम कोर्ट में अपील का रास्ता खुला है। अगर बेटियां साबित कर दें कि उन्होंने कोई Written Relinquishment Deed साइन नहीं किया या उनके हक को जान-बूझकर छीना गया है, तो सुप्रीम कोर्ट में फैसला पलट भी सकता है।
क्यों बार-बार होता है बेटियों के साथ ऐसा?
भारत में कई परिवार अब भी बेटियों को पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से बचते हैं। कई बार बेटी की शादी के समय दहेज देकर या खर्च उठाकर माना जाता है कि उसका हक खत्म हो गया। लेकिन कानून कहता है कि दहेज देने से बेटी का पैतृक संपत्ति में हक खत्म नहीं होता।
कानून में कहां हैं खामियां?
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि कानून मजबूत होने के बावजूद प्रैक्टिकल तौर पर बेटियों को न्याय नहीं मिल पाता। वजहें:
बेटियों को अपने हक के दस्तावेज नहीं मिल पाते।
परिवार के दबाव में बेटी Written Relinquishment Deed साइन कर देती हैं।
लंबी कोर्ट की लड़ाई और खर्च बेटियों को केस लड़ने से रोकता है।
कई बार परिवार के भीतर ही गवाही नहीं मिलती।
क्या कहती है सुप्रीम कोर्ट?
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के एक ऐतिहासिक फैसले में साफ कहा कि बेटियों का हक पैतृक संपत्ति में जन्म से ही होता है, चाहे पिता जिंदा हों या नहीं। इसके बावजूद निचली अदालतों में कई बार दस्तावेजी खामियों और तकनीकी पेंच के चलते बेटियां हक से वंचित रह जाती हैं।
कैसे मिले न्याय?
बेटियों को चाहिए कि संपत्ति से जुड़े सभी पुराने दस्तावेज सुरक्षित रखें।
पैतृक जमीन के बंटवारे में Written Agreement पर बिना सोचे-समझे साइन न करें।
जरूरत पड़े तो वकील या लीगल एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें।
पारिवारिक समझौते से पहले कोर्ट में Partition Suit भी दायर कर सकती हैं।
पैतृक संपत्ति में बेटियों के हक को लेकर जरूरी बातें
पैतृक संपत्ति में बेटी का हक जन्म से तय होता है।
संपत्ति स्वअर्जित है तो पिता अपनी मर्जी से किसी को भी दे सकते हैं।
वसीयत में अगर बेटी को हिस्सा नहीं दिया गया तो वह उसे कोर्ट में चुनौती दे सकती है।
परिवार में समझौते से भी बेटी अपना हक छोड़ सकती है, लेकिन यह Written होना चाहिए।
क्या करना चाहिए बेटियों को?
आज भी भारत में कई बेटियां अपने कानूनी हक से अनजान हैं। ऐसे में जरूरी है कि बेटियां अपने अधिकारों को जाने और जरूरत पड़ने पर बिना हिचक कोर्ट जाएं।
सही दस्तावेज जुटाएं।
Family Settlement Deed को पढ़कर ही साइन करें।
अगर संपत्ति में हक छीना गया हो तो तुरंत लीगल नोटिस भेजें।
वसीयत की कॉपी जरूर लें और उसमें अपना नाम देखें।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट का हालिया फैसला यह बताता है कि कानून मजबूत होने के बावजूद सही जानकारी और दस्तावेज के बिना बेटियां आज भी संपत्ति से बाहर की जा सकती हैं। सवाल ये नहीं कि कानून फेल हो रहा है, बल्कि सवाल ये है कि बेटियों को अपना हक पाने के लिए जागरूक और मजबूत होना होगा। अगर दस्तावेज सही हैं और बेटी ने Written में कोई हक नहीं छोड़ा है तो कोर्ट में जीतना मुमकिन है।
अगर आपके साथ भी ऐसी कोई स्थिति है तो तुरंत लीगल सलाह लें और अपने हक के लिए डटकर खड़े रहें। क्योंकि पैतृक संपत्ति पर बेटा-बेटी दोनों का बराबर हक है — और रहेगा।