भारत में संपत्ति से जुड़े कानूनी मामले हमेशा चर्चित रहे हैं, खासकर जब बात परिवार और रिश्तों से जुड़ी हो। हाल ही में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसमें दामाद ने ससुराल की संपत्ति पर अपना हक जताया। लेकिन जब यह मामला कोर्ट पहुंचा, तो जो फैसला आया, उसने सबको चौंका दिया। आइए जानते हैं कि क्या दामाद को ससुराल की प्रॉपर्टी में कोई कानूनी अधिकार मिल सकता है या नहीं।
क्या है मामला?
एक व्यक्ति ने शादी के बाद ससुराल में लंबे समय तक रहना शुरू किया। उसने अपने ससुराल के घर में समय, पैसा और मेहनत लगाई। कुछ साल बाद जब पारिवारिक रिश्तों में दरार आई, तो उसने दावा किया कि ससुराल की प्रॉपर्टी में उसका भी हिस्सा बनता है, क्योंकि वह वहां वर्षों से रह रहा है और उसने आर्थिक योगदान भी दिया है।
यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां से दामाद को उम्मीद थी कि उसे कुछ हक मिलेगा। लेकिन कोर्ट ने जो फैसला सुनाया, उसने सबके होश उड़ा दिए।
कोर्ट का सख्त और स्पष्ट जवाब
कोर्ट ने साफ कहा कि दामाद का ससुराल की संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता, जब तक कि ससुर या सास ने स्वयं उसे अपनी संपत्ति में हिस्सेदार न बनाया हो, जैसे वसीयत या गिफ्ट के रूप में।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि:
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शादी से कोई भी व्यक्ति ससुराल की संपत्ति का स्वाभाविक वारिस नहीं बन जाता।
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केवल कानूनी उत्तराधिकारी (Legal Heirs) को ही संपत्ति में अधिकार मिलता है।
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दामाद, चाहे ससुराल में सालों रहे हों या खर्च किया हो, कानूनी रूप से ससुराल की संपत्ति में हिस्सेदार नहीं बनता।
कानून क्या कहता है?
भारतीय कानून के अनुसार:
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सास-ससुर की संपत्ति उनके बच्चों को उत्तराधिकार में जाती है।
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अगर उन्होंने वसीयत नहीं बनाई है, तो Hindu Succession Act, 1956 के अनुसार उनकी संपत्ति संतानों में बराबर बांटी जाती है।
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दामाद को कोई हिस्सा तभी मिलेगा, जब उसे स्वेच्छा से हिस्सा दिया गया हो, न कि केवल शादी के रिश्ते के आधार पर।
सोशल मीडिया पर बवाल
जैसे ही कोर्ट का यह फैसला सामने आया, सोशल मीडिया पर लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देने लगे। कुछ लोगों ने दामाद के दावे को गलत ठहराया, तो कुछ ने पूछा – “अगर वह सालों से साथ रह रहा था तो क्या उसे कुछ नहीं मिलना चाहिए?”
लेकिन कानून की नज़र में भावनाएं नहीं, दस्तावेज़ और हक मायने रखते हैं।
निष्कर्ष
“क्या दामाद को ससुराल की संपत्ति में हक मिल सकता है?” – इसका सीधा जवाब है नहीं, जब तक उसे कानूनी रूप से हिस्सेदार न बनाया गया हो।
कोर्ट का ये फैसला एक बार फिर साफ करता है कि शादी का रिश्ता संपत्ति में अधिकार की गारंटी नहीं होता।