भारत में संपत्ति को लेकर सबसे ज्यादा विवाद विरासत (Inheritance) और पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) के बीच के अंतर को न समझ पाने की वजह से होते हैं। ज्यादातर लोग मान लेते हैं कि जो भी संपत्ति पिता या दादा से मिली है, वह पैतृक संपत्ति है, लेकिन सच्चाई इससे थोड़ी अलग है। अगर आप भी अपनी संपत्ति को लेकर कंफ्यूज हैं तो यह लेख आपके लिए बहुत जरूरी है।
सबसे पहले समझिए – विरासत में मिली संपत्ति क्या होती है?
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति उसके कानूनी वारिसों को मिलती है, तो उसे विरासत में मिली संपत्ति कहते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति के पास खुद कमाई से खरीदी गई जमीन है और उसकी मृत्यु के बाद वह संपत्ति उसके बच्चों को मिलती है, तो यह संपत्ति बच्चों के लिए विरासत में मिली संपत्ति कहलाएगी।
मुख्य बिंदु:
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विरासत में मिली संपत्ति सिर्फ एक पीढ़ी से मिलती है।
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यह सेल्फ-अक्वायर्ड प्रॉपर्टी से आती है।
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इसे पाने वाला मालिकाना हक रखता है और वह इसे बेच या ट्रांसफर कर सकता है।
पैतृक संपत्ति क्या होती है?
पैतृक संपत्ति का मतलब होता है वह संपत्ति जो कम से कम चार पीढ़ियों से चली आ रही हो। यानी अगर किसी व्यक्ति को दादा-परदादा से संपत्ति मिली है और यह बिना बंटवारे के आगे बढ़ी है, तो वह पैतृक संपत्ति मानी जाएगी।
मुख्य बिंदु:
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पैतृक संपत्ति कम से कम चार पीढ़ियों तक चलती है।
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इसमें बेटे, पोते और परपोते का जन्म से हक होता है।
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इसे मालिक अपनी मर्जी से बेच या ट्रांसफर नहीं कर सकता, सभी वारिसों की सहमति जरूरी होती है।
विरासत और पैतृक संपत्ति में सबसे बड़ा अंतर
स्वामित्व और अधिकार:
विरासत में मिली संपत्ति पर वारिस का पूरा स्वामित्व होता है। वह इसे बेच सकता है, दान कर सकता है या वसीयत के जरिए किसी को भी दे सकता है। लेकिन पैतृक संपत्ति में सभी कानूनी वारिसों का समान अधिकार होता है।
हक कैसे तय होता है:
विरासत में मिली संपत्ति में मालिक अपने अनुसार वारिस तय कर सकता है या वसीयत बना सकता है। जबकि पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार बन जाता है, चाहे वसीयत हो या न हो।
कितनी पीढ़ी:
विरासत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती है। पैतृक संपत्ति में कम से कम चार पीढ़ियां जुड़ी होती हैं – परदादा, दादा, पिता और बेटा।
कोर्ट क्या कहता है?
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने कई बार पैतृक और विरासत में मिली संपत्ति में अंतर को स्पष्ट किया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, कोई भी संपत्ति जो खुद अर्जित की गई है और वारिसों को दी गई है, वह पैतृक संपत्ति नहीं कहलाएगी, भले ही वह बेटे को पिता से ही क्यों न मिली हो।
क्यों जरूरी है यह फर्क जानना?
बहुत से लोग यह सोच कर केस हार जाते हैं कि उन्हें पैतृक संपत्ति का हक मिलेगा, जबकि वह संपत्ति विरासत में मिली होती है। उदाहरण के लिए, अगर पिता ने अपनी कमाई से संपत्ति बनाई और उसके बाद उसकी वसीयत सिर्फ एक बेटे के नाम कर दी, तो दूसरा बेटा दावा नहीं कर सकता। लेकिन अगर वही संपत्ति पैतृक है, तो हर बेटा दावा कर सकता है।
क्या वसीयत से फर्क पड़ता है?
विरासत में मिली संपत्ति: मालिक वसीयत बनाकर किसी को भी संपत्ति दे सकता है।
पैतृक संपत्ति: इसे वसीयत से नहीं बदला जा सकता। इसमें सभी कानूनी वारिसों का अधिकार बना रहता है।
महिला वारिसों का क्या अधिकार है?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और संशोधन 2005 के बाद बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का हक मिल गया है। यानी बेटा-बेटी में कोई भेद नहीं रहेगा। लेकिन विरासत में मिली संपत्ति में मालिक तय कर सकता है कि किसे देना है और किसे नहीं।
क्या पैतृक संपत्ति को बेचा जा सकता है?
पैतृक संपत्ति को बेचने के लिए सभी सह-वारिसों की सहमति जरूरी है। अगर किसी एक का भी हिस्सा बाकी है, तो वह कोर्ट में केस कर सकता है और बिक्री रद्द करवा सकता है।
क्या विरासत में मिली संपत्ति को बेचा जा सकता है?
विरासत में मिली संपत्ति को मालिक अपनी मर्जी से बेच सकता है क्योंकि उस पर उसका पूरा अधिकार होता है। इसमें किसी दूसरे वारिस की सहमति जरूरी नहीं है, जब तक वसीयत में कुछ अलग न लिखा हो।
कैसे बचें विवाद से?
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संपत्ति से जुड़े सभी दस्तावेज साफ रखें।
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पैतृक और विरासत की स्थिति को समझें।
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जरूरत पड़ने पर वकील से सलाह लें।
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पारिवारिक विवाद को कोर्ट जाने से पहले आपसी समझ से सुलझाने की कोशिश करें।
निष्कर्ष
अब आप समझ ही गए होंगे कि विरासत में मिली संपत्ति और पैतृक संपत्ति में जमीन-आसमान का फर्क है। इस फर्क को जानना जरूरी है ताकि आप अपने हक के लिए सही कदम उठा सकें। अगर आपके पास ऐसी कोई संपत्ति है, तो दस्तावेजों की जांच जरूर करवाएं और जरूरत पड़े तो कानूनी सलाह लें।