भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, लेकिन शादी के बाद अक्सर देखा गया है कि पति, पत्नी की कमाई, गहनों और संपत्ति पर अधिकार जताने लगता है। कई मामलों में तो पति या उसके परिवार वाले पत्नी की मेहनत की कमाई और व्यक्तिगत संपत्ति को अपनी मान लेते हैं। इसी पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
इस फैसले में साफ कर दिया गया है कि जो संपत्ति पत्नी के नाम है, वह केवल उसकी है और उस पर पति का कोई अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: महिला अधिकारों को मिला न्यायिक बल
इस केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि विवाह चाहे जितना भी पुराना क्यों न हो, यदि कोई संपत्ति या बैंक खाता पत्नी के नाम पर दर्ज है, तो वह सिर्फ और सिर्फ उसकी ही मानी जाएगी।
मुख्य बिंदु:
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पत्नी के नाम की संपत्ति पर पति का कोई कानूनी हक नहीं है।
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गहने, बैंक बैलेंस, निवेश या कोई अचल संपत्ति, यदि पत्नी के नाम है, तो उसका स्वामित्व सिर्फ पत्नी का है।
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पत्नी की मर्ज़ी के बिना पति उसे बेच नहीं सकता, गिरवी नहीं रख सकता और न ही इस्तेमाल कर सकता है।
पत्नी की कमाई पर अधिकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि यदि पत्नी कमा रही है या स्व-रोजगार कर रही है, तो पति को उस कमाई में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
यह फैसला उन महिलाओं के लिए बड़ी राहत है, जिनकी आर्थिक स्वतंत्रता पर पति या उसके परिजन सवाल उठाते हैं।
महत्वपूर्ण बातें जो हर महिला को जाननी चाहिए
गहने और उपहारों का अधिकार
शादी में मिले गहने, चाहे मायके से मिले हों या ससुराल से – यदि वे पत्नी को उपहार में दिए गए हैं, तो वे पति की नहीं, बल्कि पत्नी की निजी संपत्ति माने जाएंगे।
बैंक बैलेंस और इनकम टैक्स
पत्नी के नाम पर बैंक में जमा पैसा या फिक्स्ड डिपॉजिट्स भी उसकी व्यक्तिगत संपत्ति माने जाएंगे। पति इन्हें अपनी संपत्ति नहीं कह सकता।
संपत्ति के कागजात में नाम
अगर किसी प्रॉपर्टी के कागजों में सिर्फ पत्नी का नाम है, तो वह प्रॉपर्टी पति के दावे से सुरक्षित है। यहां तक कि अगर घर पति के पैसों से बना हो लेकिन नाम पत्नी का है, तो कोर्ट में यह पत्नी की संपत्ति मानी जाएगी जब तक कि इसके विपरीत कोई ठोस सबूत न हो।
कानून क्या कहता है?
भारत में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जैसे:
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हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act)
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घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (DV Act, 2005)
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भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 406 – स्त्रीधन पर अधिकार
इन सभी कानूनों के तहत पति द्वारा पत्नी की संपत्ति को हड़पना या उस पर अधिकार जताना अपराध की श्रेणी में आता है।
यदि पति जबरदस्ती करता है तो क्या करें?
अगर कोई पति या उसके परिवार वाले पत्नी की संपत्ति पर कब्जा करना चाहते हैं, तो महिला को निम्न कानूनी उपाय करने चाहिए:
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पुलिस में शिकायत दर्ज करें – IPC की धारा 406 और 498A के तहत मामला दर्ज हो सकता है।
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फैमिली कोर्ट में दावा करें – पत्नी अपनी संपत्ति वापस पाने या नियंत्रण में रखने के लिए याचिका दायर कर सकती है।
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घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सुरक्षा मांगें – संपत्ति में जबरदस्ती से रोकने और आत्मनिर्भरता के लिए।
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लॉयर से परामर्श लें – महिला को अपने दस्तावेज़ और सबूतों को सहेज कर रखना चाहिए।
यह फैसला क्यों है खास?
भारत में अनेक महिलाएं पति के डर, समाज के दबाव या कानून की जानकारी की कमी के कारण अपने ही हक से वंचित रह जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन महिलाओं को हिम्मत और कानूनी ताकत देता है जो अपनी मेहनत और अधिकार की रक्षा करना चाहती हैं।
यह फैसला यह भी दर्शाता है कि अब कानून लैंगिक समानता को प्राथमिकता दे रहा है और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को संरक्षित कर रहा है।
निष्कर्ष: अब पत्नी की संपत्ति सिर्फ उसी की
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने साफ कर दिया है कि पत्नी की संपत्ति, गहने, कमाई और उपहारों पर केवल पत्नी का ही हक है। पति या उसके परिजन यदि उस पर कोई दावा करते हैं, तो वह कानूनी रूप से गलत और दंडनीय है।
इस फैसले से महिलाओं को न सिर्फ कानूनी सुरक्षा मिली है, बल्कि यह संदेश भी गया है कि अब समय बदल चुका है — पति की मनमानी नहीं, कानून का राज चलेगा।