हाल ही में एक अदालत के फैसले ने पूरे देश में बहस को जन्म दे दिया है। मामला था पैतृक संपत्ति में बेटी के अधिकार को लेकर, और कोर्ट के आदेश के बाद कई परिवारों और कानूनी विशेषज्ञों में चिंता की लहर दौड़ गई है। क्या सच में अब बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा? इस लेख में हम विस्तार से बताएंगे कि कोर्ट ने क्या कहा, मौजूदा कानून क्या है, और आम लोगों को क्या जानना जरूरी है।
अदालत का हालिया फैसला क्या कहता है?
2025 की एक हालिया केस में, एक हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की कि यदि पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने से पहले हो जाती है, तो बेटी को पैतृक संपत्ति में उतना ही हक नहीं मिलेगा, जितना बेटों को।
कोर्ट ने साफ किया कि केवल संशोधित कानून के लागू होने के बाद यदि पिता जीवित हों, तभी बेटी को बराबरी का हक मिलेगा।
क्या है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और संशोधन 2005?
1956 अधिनियम के अनुसार:
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बेटियों को पैतृक संपत्ति में सीमित अधिकार थे।
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आमतौर पर संपत्ति बेटे या पुरुष उत्तराधिकारियों में ही बंटती थी।
2005 में हुआ बदलाव:
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2005 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और संसद के संशोधन के तहत बेटी को भी बेटों के बराबर अधिकार दिया गया।
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अब बेटियाँ भी पिता की संपत्ति में संवत्सरी उत्तराधिकारी (coparcener) बन गईं।
कोर्ट के फैसले से मचा हड़कंप क्यों?
हाल के फैसले में कोर्ट ने दो बातों को स्पष्ट किया:
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यदि पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो गई, तो बेटी को नया कानून लागू नहीं होगा।
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केवल वही बेटियाँ संपत्ति की हकदार होंगी, जिनके पिता की मृत्यु 2005 या उसके बाद हुई।
इस फैसले ने हजारों उन बेटियों की उम्मीदों को झटका दिया, जिनके पिता की मृत्यु पहले हो चुकी थी और वे अब संपत्ति पर दावा कर रही थीं।
क्या यह फैसला सभी मामलों पर लागू होता है?
नहीं। यह फैसला विशिष्ट तथ्यों वाले एक केस पर आधारित है। हालांकि, यह अन्य समान मामलों में न्यायिक मार्गदर्शन का काम करता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय ही पूरे देश में बाध्यकारी होगा।
बेटियों के लिए क्या है कानूनी स्थिति अभी?
यदि पिता की मृत्यु 2005 के बाद हुई है:
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बेटी और बेटा दोनों समान उत्तराधिकारी होंगे।
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बेटी शादीशुदा हो या न हो, उस पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
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पिता की संपत्ति में बराबरी का हक मिलेगा।
यदि मृत्यु 2005 से पहले हुई है:
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तब पुराने नियम लागू हो सकते हैं।
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बेटी को संपत्ति में पूर्ण अधिकार नहीं मिल सकता, यह केस पर निर्भर करता है।
संपत्ति का प्रकार भी मायने रखता है
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पैतृक संपत्ति (Ancestral Property)
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जिसमें परिवार की चार पीढ़ियों का हिस्सा हो।
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इसमें बेटी को संशोधन के बाद अधिकार मिला है।
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स्वअर्जित संपत्ति (Self-acquired Property)
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यदि पिता ने अपनी मेहनत से संपत्ति बनाई है, तो वह अपनी इच्छा से किसी को भी दे सकते हैं।
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वसीयत के बिना यह संपत्ति उत्तराधिकार के नियमों से बंटेगी।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि:
“बेटी चाहे पिता के जीवनकाल में पैदा हुई हो या नहीं, उसे संपत्ति में समान अधिकार है, यदि मृत्यु 2005 के बाद हुई हो।”
यह फैसला महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करता है, लेकिन हालिया फैसलों में कुछ तकनीकी व्याख्याएं असमंजस पैदा कर रही हैं।
क्या बेटियों को चिंता करनी चाहिए?
इस विषय में स्पष्टता की कमी के कारण बेटियों को यह जानना जरूरी है कि:
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कोर्ट के हालिया फैसले हर केस में लागू नहीं होते।
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अगर आपकी स्थिति अलग है, तो कानूनी सलाह जरूर लें।
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यदि पिता ने वसीयत में नाम लिखा है, तो संपत्ति मिल सकती है।
बेटियों को क्या करना चाहिए?
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संपत्ति से जुड़े दस्तावेज़ इकट्ठा करें
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खतौनी, वसीयत, मृत्यु प्रमाण पत्र
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2005 के बाद मृत्यु हुई है तो दावा करें
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सबूतों के आधार पर आप कानूनी अधिकार के लिए आवेदन कर सकते हैं।
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वकील से परामर्श लें
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हर केस की परिस्थिति अलग होती है, इसलिए विशेषज्ञ सलाह लें।
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निष्कर्ष
पिता की संपत्ति पर बेटियों का हक अब भी कायम है, लेकिन कुछ कानूनी शर्तों और तारीखों के अनुसार यह हक सीमित या विवादित हो सकता है। हालिया कोर्ट के फैसले ने इस बहस को और तेज कर दिया है। ऐसे में बेटियों को सतर्कता, कानूनी जानकारी, और दस्तावेजों की सटीकता पर ध्यान देना जरूरी है।
यदि आप भी इस स्थिति से गुजर रहे हैं, तो तत्काल किसी अनुभवी वकील से संपर्क करें और अपने अधिकार की जानकारी पूरी तरह लें।