भारत में पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद आम बात है। कई बार माता-पिता अपने बेटे से नाखुश रहते हैं — वजह चाहे उसकी आदतें हों या व्यवहार। अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या माता-पिता नालायक या निकम्मे बेटे को अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं? इसका जवाब जानना हर माता-पिता और बेटे के लिए जरूरी है।
इस आर्टिकल में आप जानेंगे कि बेटे को संपत्ति से बेदखल करने के नियम क्या हैं, किस स्थिति में माता-पिता बेटे को संपत्ति से निकाल सकते हैं और क्या कहता है भारतीय कानून।
भारत में संपत्ति के दो प्रकार — पहले इन्हें समझें
भारत में संपत्ति दो तरह की होती है:
स्व अर्जित संपत्ति (Self Acquired Property)
पैतृक संपत्ति (Ancestral Property)
स्व अर्जित संपत्ति:
अगर संपत्ति माता-पिता ने अपनी कमाई से खरीदी है तो उसे स्व अर्जित संपत्ति कहते हैं।
पैतृक संपत्ति:
अगर संपत्ति पुरखों से चली आ रही है और चार पीढ़ियों से ट्रांसफर हो रही है तो उसे पैतृक संपत्ति कहा जाता है।
स्व अर्जित संपत्ति में बेटे का हक
अगर कोई संपत्ति माता-पिता की अपनी कमाई से खरीदी गई है तो उस पर उनका पूरा अधिकार होता है। वह अपनी मर्जी से इसे किसी को भी दे सकते हैं — बेटे को, बेटी को या किसी और को। ऐसे में माता-पिता बेटे को बेदखल कर सकते हैं या अपनी वसीयत से उसका नाम हटा सकते हैं।
लेकिन ध्यान रहे, अगर कोई वसीयत नहीं बनाई गई है और माता-पिता का निधन हो जाता है, तो यह संपत्ति उत्तराधिकार कानून के तहत बेटे-बेटी और पत्नी में बराबर बंटती है।
पैतृक संपत्ति में बेटे का हक
यहीं कहानी बदल जाती है। पैतृक संपत्ति पर बेटे का अधिकार जन्म से ही बन जाता है। माता-पिता चाहकर भी उसे बेदखल नहीं कर सकते। बेटे के अलावा बेटी को भी बराबर का अधिकार मिलता है।
उदाहरण: अगर पिता के पास दादा से मिली जमीन है तो उस पर बेटा और बेटी दोनों का बराबर हक होगा। ऐसे में नालायक बेटा भी बेदखल नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या कहता है?
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अपने फैसलों में कहा है कि पैतृक संपत्ति से बेटे को बेदखल नहीं किया जा सकता। अगर माता-पिता चाहते हैं कि बेटा पैतृक संपत्ति में हिस्सा न ले तो उन्हें पहले संपत्ति बेचकर पैसा दूसरी संपत्ति में लगानी होगी, ताकि वह स्व अर्जित संपत्ति में बदल जाए।
क्या माता-पिता बेटे को घर से निकाल सकते हैं?
हां! अगर बेटा माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करता है या उन्हें परेशान करता है तो माता-पिता सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत उसे घर से निकाल सकते हैं। इसके लिए उन्हें जिला मजिस्ट्रेट या SDM के पास शिकायत करनी होती है।
लेकिन ध्यान रहे, यह अधिकार केवल स्व अर्जित संपत्ति या माता-पिता के नाम रजिस्टर्ड घर पर लागू होता है। पैतृक घर में यह नियम काम नहीं करता।
बेटे को बेदखल करने के लिए वसीयत जरूरी
अगर माता-पिता अपनी संपत्ति बेटे को नहीं देना चाहते हैं तो उन्हें एक वैध वसीयत बनानी होगी। वसीयत में साफ लिखना होगा कि कौन-सी संपत्ति किसे मिलेगी।
वसीयत:
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गवाहों की मौजूदगी में बनानी चाहिए।
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रजिस्टर्ड कराना बेहतर होता है।
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बिना वसीयत के संपत्ति उत्तराधिकार कानून के अनुसार बंट जाएगी।
क्या बेटी का भी बराबर हक है?
हां! 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद बेटी को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का हक मिला है। माता-पिता चाहें तो बेटी को स्व अर्जित संपत्ति में हिस्सा दे सकते हैं या न दें — लेकिन पैतृक संपत्ति में बेटी का अधिकार भी जन्म से ही तय हो जाता है।
बेटे को बेदखल करने के झूठे कागज से सावधान!
कई बार माता-पिता बेटे को बेदखल करने के लिए नोटिस बोर्ड या अखबार में नोटिस छपवा देते हैं। लेकिन अगर संपत्ति पैतृक है तो यह कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा। कोर्ट में ऐसी बेदखली टिक नहीं पाती।
सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 क्या कहता है?
इस कानून के मुताबिक माता-पिता अपने देखभाल के अधिकार के लिए शिकायत दर्ज कर सकते हैं। अगर बेटा माता-पिता को प्रताड़ित करता है या घर से निकालने की कोशिश करता है तो माता-पिता उसे घर से निकाल सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत में बेटे को संपत्ति से बेदखल करना इतना आसान नहीं है। अगर संपत्ति स्व अर्जित है तो माता-पिता अपनी मर्जी से बेटे को हिस्सा न देकर किसी और को दे सकते हैं। लेकिन पैतृक संपत्ति में बेटे का अधिकार जन्म से होता है और उसे बेदखल नहीं किया जा सकता।
माता-पिता को अपनी संपत्ति का सही प्लानिंग करना चाहिए और जरूरत हो तो सही वकील से सलाह लेकर वसीयत जरूर बनानी चाहिए ताकि बाद में परिवार में विवाद न हो।